Sunday, September 16, 2007

गालिब का एक शेर...........

बहुत दिनो के बाद आज आपसे मुखातिब हुये हैं......आज एक शेर...

गालिब का एक शेर याद आ रहा है.....................

हम कहां के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बेसबब हुआ दुश्मन गालिब आसमां अपना।
हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है
वो हरेक बात पर कहना कि,यूं होता तो क्या होता।

.......

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत लंबे समय बाद आये हैं. अब जारी रखें लेखन. शुभकामनायें.

Sagar said...

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बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...