बहुत दिनो के बाद आज आपसे मुखातिब हुये हैं......आज एक शेर...
गालिब का एक शेर याद आ रहा है.....................
हम कहां के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बेसबब हुआ दुश्मन गालिब आसमां अपना।
हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है
वो हरेक बात पर कहना कि,यूं होता तो क्या होता।
.......
Sunday, September 16, 2007
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बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...
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एक दिन तो मुकम्मल मोहब्बत करो रफ्ता रफ्ता यूँ ज़िन्दगी गुज़र जायेगी शाम ठहरी है ठहरी रहेगी सनम यूँ पत्थर न मारो बिखर जायगी ...
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मौन हृदय से मेरे अब आवाज रुंधी सी आती है आती है जब भी याद जी भरकर आती है... मसरुफ हैं वो तो मसरुफ हम भी हैं, ख्वाबों के भंवर में हर रात गुजर...