Thursday, July 31, 2014

वो अपने जाने का सामान कर बैठे

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      वो अपने जाने का सामान कर बैठे
यूँ मेरी जिंदगी की शाम कर बैठे

कैसे कटेगा बेसब्र तन्हाई का आलम
कैसे कटेगा वक़्त. वो जुदाई का आलम
न दिन गुजरेगा न रात गुजरेगी                    
वो तन्हा शाम बेबात गुजरेगी

अपनी तम्मनाओ को देकर परवाज़
मेरी हसरतों को विराम  दे बैठे

       तसव्वुर उनके ख्यालात उनके
बातें उनकी वाक्यात उनके
गुज़र के गयी जो सबा उनकी थी
बहा ले गयी वो सदा उनकी थी

       खुद तो गये.वो  ,हम तनहा 'क्षितिज़'    
जिंदगी हमारी तमाम कर बैठे।

बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...