Friday, May 4, 2007

बदले ढंग तो संग भी हैं बदले,......एक गज़ल

बदले ढंग तो संग भी हैं बदले,
जीने के फिर हमारे रंग भी बदले॥

हां हुये हैं कुछ - कुछ गमगीन हम
ना चैन दिन में रातों को नींद कम॥

और तो और ग़लतफहमियों के शिकार हो गये,
दुनिया की नज़रों से दरकिनार हो गये॥

शिकायत भी करें तो किससे क्या कहें,
तफ्सील से गमों का सिलसिला कहें॥

महफिलों में यहां तन्हाई बसती है,
महंगी हैं जिंदगी ,मौत सस्ती है॥

कुछ रोज़ हो गये कि सोचता हूं,
बरसों हैं गुजरे शायद नही हंसा हूं॥

फिर से नज़र कोने पे आज पड़ी है,
भूल गया था ना जाने कब से ये खड़ी है...
वो छड़ी मैं आज उठा लाया हूं,
पलकों पर यादें सजा लाया हूं.......



बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...