Thursday, May 3, 2007

एक गजल

मौन हृदय से मेरे अब आवाज रुंधी सी आती है
आती है जब भी याद जी भरकर आती है...

मसरुफ हैं वो तो मसरुफ हम भी हैं,
ख्वाबों के भंवर में हर रात गुजर जाती है...

परेशां रहोगे कब तलक ए बिखरे हुये नजारों
बंजर अब ज़मी हर सिम्त नज़र आती है...

न मालूम किस तरफ से क्यों तूफान था आया ,
हर याद पे, अश्कों से अब आंख भर आती है...

मौजों से खेलता हूं हर बार हारता हूं
मुट्ठी की गिरफ्त से मेरी हर मौज फिसल जाती है...

सोचा था याद आयेंगे मर कर सभी को हम
हवा के इक झोंके से मेरी खाक बिखर जाती है.......

बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...