Friday, June 12, 2015

अरमान

ग़मज़दा बैठा हूँ कि मेले भी हैं महफ़िल भी

ग़मज़दा बैठा हूँ कि मेले भी हैं महफ़िल भी

खड़ी वो सामने मेरे मंज़िल हँसा करती तो है

वक़्त था तो साथ मेरे सारा जहाँ आता था अब
शब भर मेरे साथ मेरी तन्हाइयां जगा करती तो हैं

बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...