मौन हृदय से मेरे अब आवाज रुंधी सी आती है
आती है जब भी याद जी भरकर आती है...
मसरुफ हैं वो तो मसरुफ हम भी हैं,
ख्वाबों के भंवर में हर रात गुजर जाती है...
परेशां रहोगे कब तलक ए बिखरे हुये नजारों
बंजर अब ज़मी हर सिम्त नज़र आती है...
न मालूम किस तरफ से क्यों तूफान था आया ,
हर याद पे, अश्कों से अब आंख भर आती है...
मौजों से खेलता हूं हर बार हारता हूं
मुट्ठी की गिरफ्त से मेरी हर मौज फिसल जाती है...
सोचा था याद आयेंगे मर कर सभी को हम
हवा के इक झोंके से मेरी खाक बिखर जाती है.......
Thursday, May 3, 2007
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बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...
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एक दिन तो मुकम्मल मोहब्बत करो रफ्ता रफ्ता यूँ ज़िन्दगी गुज़र जायेगी शाम ठहरी है ठहरी रहेगी सनम यूँ पत्थर न मारो बिखर जायगी ...
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इनपे भरोसा समझो अपनी जान आफत में डालना है। यानि हमारे एक मित्र हैं चंदूलाल पालकीवाला। यही कोई पचास के लपेट में होंगे। अभी पिछले ही हफ्ते उनक...
5 comments:
hridya sparshi khyaal khoobsoorti se likheN haiN. bahut pasand aayi 'ek ghazal'
धन्यवाद नीलम जी...
सुंदर रचना ।
achcha likha hai..likhte rahein
उत्साहवर्धन के लिये आप सभी का धन्यवाद
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