मैं तो मजबूर हूं तुम तो होश में आयो यारों
इस मदहोश ज़माने को होश में लायो यारों
जिंदगी उनकी भी बड़ी कीमत वाली है
उनकी आंखों में भी ईद , दिवाली है।
भूख की आग हर शाम दहकती है,
हर रोज़ वो मासूम बिलखती है,
हाय कुछ इनकी कुछ दिल की सुन जाओ यारों
मैं तो ------
बड़े ताज्जुब से उन आंखों ने घूरा था मुझे
जैसे दूर कहीं अरमानों ने करवट बदली
जैसे तमन्नाओं ने फिर ली अंगड़ाई
उफ् नन्ही आखों की तड़पन नही देखी जाती
मैं तो भारी कदमों से आगे बढ़ आया हूं
तुम तो कोई स्वप्न महल बना लाओ यारों
मैं तो मजबूर हूं तुम तो होश में आयो यारों
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2 comments:
आपकी मजबूरी है क्या हमको जरा बताओ तो
नन्ही जान मुसीबत भारी कैसे यह समझाओ तो
अच्छा लिखा है.. आप और भी अच्छा लिख सकते है..
सिर्फ लफ़्जों और लय पर ज्यादा ध्यान देँ
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