जब से तुम मनमीत बने हो,
कोकिला का कंपित स्वर ही
बजने लगा है अंतर्मन में,
निर्झर की झर झर वाणी ने
स्वर बसा दिये इस निर्जन में,
कोमल हृदय के कण कण में
तुम मेरे संगीत बने हो।
जब से तुम ..................
पल पल प्रतिपल, दिक् दिक् प्रतिदिक्,
नयन निर्मिमेष तुम्हे निहारते,
झंकृत तारों के स्वर भी,
तेरा नाम ही सदा पुकारते,
अंग अंग की भाषा तुम हो
तुम मन की ही प्रीत बने हो ।
जब से तुम ..................
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...
-
एक दिन तो मुकम्मल मोहब्बत करो रफ्ता रफ्ता यूँ ज़िन्दगी गुज़र जायेगी शाम ठहरी है ठहरी रहेगी सनम यूँ पत्थर न मारो बिखर जायगी ...
-
बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...
-
मौन हृदय से मेरे अब आवाज रुंधी सी आती है आती है जब भी याद जी भरकर आती है... मसरुफ हैं वो तो मसरुफ हम भी हैं, ख्वाबों के भंवर में हर रात गुजर...
No comments:
Post a Comment