एक ब्लॉग पढ़ रहा था...शीर्षक था ...(ये खून के रिश्ते ) और नाम था..दिल के दरमियां.. तो ..मेरे जहन में एक कविता ने जन्म लिया...
ये खून के रिश्ते दिल के दरमियां आते तो होंगे॥
मुंडेर पे छत की बैठ कबूतर गाते तो होंगे..
वो ब्याह कराना गुड्डे का,वो हाथ रचाना गुड़िया का
चोर बन आंगन के कोने छुप-छुप जाना मुनिया का
मुंह चिढ़ाकर नन्हे को सिर खुजलाना मुनिया का
गुस्से में नन्हे का आना,झोटा हिलाना मुनिया का
बच्चे, तेरे जहन में बैठे, ऱुठते मनाते तो होंगें...
ये खून के रिश्ते दिल के दरमियां आते तो होंगे....
दरख्त के नीचे आंगन में झर झर कर झर आती वो धूप,
सांझ के दामन में छिपकर बांहो को सरकाती वो धूप
वो धूप तुम्हारे आंगन में अब भी यूं ही इठलाती है
गरम गरम बोसों से अपने,दिल को अब भी सहलाती है
उमड़ घुमड़ती यादों के पल,जहन में तेरे, आते तो होंगे
ये खून के रिश्ते दिल के दरमियां आते तो होंगे...........
Saturday, September 29, 2007
Sunday, September 16, 2007
गालिब का एक शेर...........
बहुत दिनो के बाद आज आपसे मुखातिब हुये हैं......आज एक शेर...
गालिब का एक शेर याद आ रहा है.....................
हम कहां के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बेसबब हुआ दुश्मन गालिब आसमां अपना।
हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है
वो हरेक बात पर कहना कि,यूं होता तो क्या होता।
.......
गालिब का एक शेर याद आ रहा है.....................
हम कहां के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बेसबब हुआ दुश्मन गालिब आसमां अपना।
हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है
वो हरेक बात पर कहना कि,यूं होता तो क्या होता।
.......
Sunday, June 10, 2007
इनपे भरोसा कभी ना करना
इनपे भरोसा समझो अपनी जान आफत में डालना है। यानि
हमारे एक मित्र हैं चंदूलाल पालकीवाला। यही कोई पचास के लपेट में होंगे। अभी पिछले ही हफ्ते उनकी पालकी उठ गयी मतलब यम के दूत हमारे चंदू जी को उस स्थान की सैर पर ले गये जंहा जाने के लिये कोई राजी नही होता क्योंकि सब जानते हैं कि यंहा जाने का टिकट तो है लेकिन वापसी का टिकट नही है। हांलाकि यात्रा स्पोंसर्ड होती है एकदम फ्री ऑफ कोस्ट है। पर जब दूत आते हैं तो ना चाहते हुये भी जाना पड़ता है। बहरआल चंदू जी गये या यूं कहे कि दूत महाराज ले गये। घर में रोहाराट मच गया। जाहिर था दिखाना जो था। मन ही मन भले ही सब खुश हों मेरे मित्र के जाने से। खैर मातम के बाद जलाने को ले जाने के लिये प्रक्रिया अभी अद्धम में ही थी कि चंदू जी एक झटके के साथ उठ बैठे। और ये क्या सभी के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित खुशी के भाव आ गये। हुआ यूं कि यम के दूत भी आजकल गलती करने लग गये हैं। किसी के बदले में हमारे चंदू जी का नम्बर लगा बैठे।
पर साहब असली बात तो हम अब बताने जा रहे हैं.. अभी तक तो भूमिका ही बांध रहे थे। चंदू जी गये और आये बात आयी गयी हो गयी। कुछ दिन बाद एकांत में निठल्लेपन में कमर तोड़ रहे थे तो चंदू जी आन पहुंचे। बात निकली तो फिर दूर तलक गयी। हमारे चंदू जी ने बताया कि यम का दरबार सजा हुआ था। वो जब पहुंचे तो यमराज जी इस बात से खुश हुए कि चलो एक खबरनवीस तो आज फंसा। लेकिन तभी उसके सेक्रेटरी ने यमराज के कान में कुछ फूंक सी मारी। कुछ कहा ही होगा। यमराज ने नाराजगी में उन दूतों को बुला भेजा जो मुझे ले गये थे। उनको बताया गया कि जिस वो जिस आदमी को पकड़ कर लाये हैं उसका वक्त नही आया है। उनसे पूछा गलती कैसे हुई तो यमदूतों ने जवाब दिया। महाराज हमारी कोई गलती नही हम तो खबरिया चैनल्स पे खबर देखकर निकले थे। सभी पर एक ही खबर आ रही थी। कि मशहूर पत्रकार चंदूलाल पालकीवाला हमारे बीच नही रहे। इनकी शान में कसीदे काढ़े जा रहे थे। फोनो पर फोनो चल रहे थे कुछ ने तो उस हलवाई का फोनो भी करा दिया था जो बचपन में इनके नुक्कड़ पर खोली में दुकान चलाता था और एक बार इन्होने जब वो सड़ी सी मिठाई चुराली थी तो उस हलवाई ने दो चांटे इनको रसीद कर दिये थे। खैर हमे यकीन हो गया कि हो ना हो ये मर ही गये होंगे। यमराज जी ने डांटा और कहा कि खबरों के लिये तुमसे किसने कहा खबरिया चैनल्स देखने को। जाओ चंदू जी को बाइज्जत छोड़ के आओ। सो आज मैं आपके सामने हूं चंदू जी बड़ी बेचारगी से बोले।
हमारे एक मित्र हैं चंदूलाल पालकीवाला। यही कोई पचास के लपेट में होंगे। अभी पिछले ही हफ्ते उनकी पालकी उठ गयी मतलब यम के दूत हमारे चंदू जी को उस स्थान की सैर पर ले गये जंहा जाने के लिये कोई राजी नही होता क्योंकि सब जानते हैं कि यंहा जाने का टिकट तो है लेकिन वापसी का टिकट नही है। हांलाकि यात्रा स्पोंसर्ड होती है एकदम फ्री ऑफ कोस्ट है। पर जब दूत आते हैं तो ना चाहते हुये भी जाना पड़ता है। बहरआल चंदू जी गये या यूं कहे कि दूत महाराज ले गये। घर में रोहाराट मच गया। जाहिर था दिखाना जो था। मन ही मन भले ही सब खुश हों मेरे मित्र के जाने से। खैर मातम के बाद जलाने को ले जाने के लिये प्रक्रिया अभी अद्धम में ही थी कि चंदू जी एक झटके के साथ उठ बैठे। और ये क्या सभी के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित खुशी के भाव आ गये। हुआ यूं कि यम के दूत भी आजकल गलती करने लग गये हैं। किसी के बदले में हमारे चंदू जी का नम्बर लगा बैठे।
पर साहब असली बात तो हम अब बताने जा रहे हैं.. अभी तक तो भूमिका ही बांध रहे थे। चंदू जी गये और आये बात आयी गयी हो गयी। कुछ दिन बाद एकांत में निठल्लेपन में कमर तोड़ रहे थे तो चंदू जी आन पहुंचे। बात निकली तो फिर दूर तलक गयी। हमारे चंदू जी ने बताया कि यम का दरबार सजा हुआ था। वो जब पहुंचे तो यमराज जी इस बात से खुश हुए कि चलो एक खबरनवीस तो आज फंसा। लेकिन तभी उसके सेक्रेटरी ने यमराज के कान में कुछ फूंक सी मारी। कुछ कहा ही होगा। यमराज ने नाराजगी में उन दूतों को बुला भेजा जो मुझे ले गये थे। उनको बताया गया कि जिस वो जिस आदमी को पकड़ कर लाये हैं उसका वक्त नही आया है। उनसे पूछा गलती कैसे हुई तो यमदूतों ने जवाब दिया। महाराज हमारी कोई गलती नही हम तो खबरिया चैनल्स पे खबर देखकर निकले थे। सभी पर एक ही खबर आ रही थी। कि मशहूर पत्रकार चंदूलाल पालकीवाला हमारे बीच नही रहे। इनकी शान में कसीदे काढ़े जा रहे थे। फोनो पर फोनो चल रहे थे कुछ ने तो उस हलवाई का फोनो भी करा दिया था जो बचपन में इनके नुक्कड़ पर खोली में दुकान चलाता था और एक बार इन्होने जब वो सड़ी सी मिठाई चुराली थी तो उस हलवाई ने दो चांटे इनको रसीद कर दिये थे। खैर हमे यकीन हो गया कि हो ना हो ये मर ही गये होंगे। यमराज जी ने डांटा और कहा कि खबरों के लिये तुमसे किसने कहा खबरिया चैनल्स देखने को। जाओ चंदू जी को बाइज्जत छोड़ के आओ। सो आज मैं आपके सामने हूं चंदू जी बड़ी बेचारगी से बोले।
Friday, May 4, 2007
बदले ढंग तो संग भी हैं बदले,......एक गज़ल
बदले ढंग तो संग भी हैं बदले,
जीने के फिर हमारे रंग भी बदले॥
हां हुये हैं कुछ - कुछ गमगीन हम
ना चैन दिन में रातों को नींद कम॥
और तो और ग़लतफहमियों के शिकार हो गये,
दुनिया की नज़रों से दरकिनार हो गये॥
शिकायत भी करें तो किससे क्या कहें,
तफ्सील से गमों का सिलसिला कहें॥
महफिलों में यहां तन्हाई बसती है,
महंगी हैं जिंदगी ,मौत सस्ती है॥
कुछ रोज़ हो गये कि सोचता हूं,
बरसों हैं गुजरे शायद नही हंसा हूं॥
फिर से नज़र कोने पे आज पड़ी है,
भूल गया था ना जाने कब से ये खड़ी है...
वो छड़ी मैं आज उठा लाया हूं,
पलकों पर यादें सजा लाया हूं.......
जीने के फिर हमारे रंग भी बदले॥
हां हुये हैं कुछ - कुछ गमगीन हम
ना चैन दिन में रातों को नींद कम॥
और तो और ग़लतफहमियों के शिकार हो गये,
दुनिया की नज़रों से दरकिनार हो गये॥
शिकायत भी करें तो किससे क्या कहें,
तफ्सील से गमों का सिलसिला कहें॥
महफिलों में यहां तन्हाई बसती है,
महंगी हैं जिंदगी ,मौत सस्ती है॥
कुछ रोज़ हो गये कि सोचता हूं,
बरसों हैं गुजरे शायद नही हंसा हूं॥
फिर से नज़र कोने पे आज पड़ी है,
भूल गया था ना जाने कब से ये खड़ी है...
वो छड़ी मैं आज उठा लाया हूं,
पलकों पर यादें सजा लाया हूं.......
Thursday, May 3, 2007
एक गजल
मौन हृदय से मेरे अब आवाज रुंधी सी आती है
आती है जब भी याद जी भरकर आती है...
मसरुफ हैं वो तो मसरुफ हम भी हैं,
ख्वाबों के भंवर में हर रात गुजर जाती है...
परेशां रहोगे कब तलक ए बिखरे हुये नजारों
बंजर अब ज़मी हर सिम्त नज़र आती है...
न मालूम किस तरफ से क्यों तूफान था आया ,
हर याद पे, अश्कों से अब आंख भर आती है...
मौजों से खेलता हूं हर बार हारता हूं
मुट्ठी की गिरफ्त से मेरी हर मौज फिसल जाती है...
सोचा था याद आयेंगे मर कर सभी को हम
हवा के इक झोंके से मेरी खाक बिखर जाती है.......
आती है जब भी याद जी भरकर आती है...
मसरुफ हैं वो तो मसरुफ हम भी हैं,
ख्वाबों के भंवर में हर रात गुजर जाती है...
परेशां रहोगे कब तलक ए बिखरे हुये नजारों
बंजर अब ज़मी हर सिम्त नज़र आती है...
न मालूम किस तरफ से क्यों तूफान था आया ,
हर याद पे, अश्कों से अब आंख भर आती है...
मौजों से खेलता हूं हर बार हारता हूं
मुट्ठी की गिरफ्त से मेरी हर मौज फिसल जाती है...
सोचा था याद आयेंगे मर कर सभी को हम
हवा के इक झोंके से मेरी खाक बिखर जाती है.......
Wednesday, May 2, 2007
समाचार बाजार बनाता है....
निर्मल आंनद जी का आलेख पढ़ा ॥समाचार कौन बनाता है... मै इस बात से सहमत नही हूं कि शिल्पा-गेर प्रकरण किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा था। जिस समय ये खबर आयी उस समय ऑफिस मे मौजूद था। रात्रि के दस बज चुके थे। तभी हमारे भाई बन्धु चैनल ने इस खबर को सामान्य घटना के तौर पर दिखाया और हमारा भी कोई इरादा नही था लेकिन चूंकि प्रतियोगिता का जमाना है और हमे आगे रहना तो खबर को मसाला तो बनाना ही पड़ेगा। इसलिये जब हमने खबर दिखानी शुरु की तो दिखाते गये क्योंकि लोगों का उत्साह खबर देखने के लिये हमसे भी ज्यादा था। अतः खबर जो शुरु हुई तो रुकी रात के १.३० बजे । चूंकि खबर को तूल दे चुके थे इसलिये लाजिमी था कि दूसरे चैनल्स भी इस खबर पर आ गये । और जाहिर है अगले दिन की सबसे बड़ी खबर बन चुकी थी क्या अखवारों में और क्या चैनल्स पर ... राहुल बाबा की बात चुम्बन प्रकरण में दब कर रह गयी। वो इसलिये कि बाजार चुम्बन का ज्यादा है ना कि राहुल बाबा का......
है दर्द मेरे दिल में.....
है दर्द मेरे दिल में , लबों पे ये हंसी हैं ,
अंधेरों का सफर है, ना कोई रोशनी है।
वक्त है कि कभी हमसफर ना बन सका
जिंदगी बस यूं ही जिंदगी है,
अंधेरों की तन्हाइयां है कि मै सफर में हूं
गमों की खामोशियां है कि मै सफर में हूं
हद तलक तेरा साथ निबाहुगां जिंदगी
दफ्न की तैयारियां है कि मै सफर में हूं॥
अंधेरों का सफर है, ना कोई रोशनी है।
वक्त है कि कभी हमसफर ना बन सका
जिंदगी बस यूं ही जिंदगी है,
अंधेरों की तन्हाइयां है कि मै सफर में हूं
गमों की खामोशियां है कि मै सफर में हूं
हद तलक तेरा साथ निबाहुगां जिंदगी
दफ्न की तैयारियां है कि मै सफर में हूं॥
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बीता वक्त आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक...
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एक दिन तो मुकम्मल मोहब्बत करो रफ्ता रफ्ता यूँ ज़िन्दगी गुज़र जायेगी शाम ठहरी है ठहरी रहेगी सनम यूँ पत्थर न मारो बिखर जायगी ...
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