आज एक बहुत ही लम्बे वक्त के बाद ब्लॉग पर वापसी की है। उम्मीद है कि अब जारी रख पाऊंगा। पता ही नही चला कि ज़िंदगी की जद्दोजहद में वक्त कब बीत गया। बहुत कुछ पीछे छूट गया । एक सफ़र की तरह बहुत कुछ नया मिलता चला गया और पुराना पीछे छूटता चला गया।
ज़िंदगी कुछ ऐसी ही होती है, किसी किताब के काग़ज़ के सफ़ों की तरह बस पलटते चले जाते हैं । नये सफ़ों पर नये हर्फ लिखे होते हैं..
ख़बरों की दुनिया में एक बहुत लम्बा वक्त बीता दिया। हासिल क्या रहा , इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा हूं।
वो कहते हैं कि
उम्मीदों, ख़्वाहिशों के इस पार आ गया
कोई शक़्स मुझमें समझदार आ गया।
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हाँ शायद ज़िंदगी जीने का सही तरीका यही है कि उम्मीद मत करो, ख्वाहिशों को मत पालो...
आज बस इतना ही...